आज हम विदेशों में हिन्दी को एक मजबूत भाषा के रूप में देख रहे हैं। कोरोना ने हमारे सामाजिक संबंधों को सीमित कर दिया है। आज हमारे साहित्यकार के सामने बड़ी चुनौती है।
यह बातें विशिष्ट वक्ता प्रवासी साहित्यकार नीदरलैंड निवासी प्रोफेसर पुष्पिता अवस्थी ने कोरोना संक्रमण काल में साहित्य और समाज विषय पर शासकीय पीजी लाहिड़ी काॅलेज में आयोजित एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबीनार ई-संगोष्ठी में कही। इस वेबीनार में देश-विदेश के साहित्यकार शामिल हुए। काॅलेज की प्राचार्य और वेबीनार की संरक्षक डाॅ. आरती तिवारी ने कहा कि हिन्दी विभाग के लिए यह गौरव की बात है कि आज अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्वान हमारे शासकीय लाहिड़ी पीजी काॅलेज से जुड़ रहे हैं। कार्यक्रम के संयोजक हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. रामकिंकर पांडेय ने आयोजन की भूमिका और प्रस्तावना रखते हुए कहा कि कोरोना काल में आयोजित होने वाला यह अंतरराष्ट्रीय वेबीनार विभाग के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस वेबीनार के लिए देश-विदेश के यूनिवर्सिटी और कॉलेज से 1500 लोगों ने आॅनलाइन पंजीयन कराया था।
इस प्राकृतिक संकट से हमें मिलकर लड़ना है: प्रो. सिंह
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डा. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में हिंदी और संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि कोरोना मानवता के लिए एक भयावह त्रासदी है और इस त्रासदी की उपस्थिति हमारे साहित्य की सभी विविध विधाओं में आज दिखाई दे रही है, साहित्यकार इस त्रासदी को लेकर पूरी तरह से जागरूक है। वरिष्ठ कथाकार गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर में हिन्दी के प्रोफेसर देवेन्द्र नाथ सिंह ने कहा कि यह एक प्राकृतिक संकट है, जिससे हम सभी मिलकर लड़ सकते हैं। यह हमारी मानवता के विकास की अवधारणा पर एक संकट है।
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