
पाकिस्तान सीमा से 500 मीटर पहले देश का आखिरी गांव कालूवाला। सतलुज दरिया के टापू पर बसे इस गांव की करीब 400 की आबादी है। यहां किसी तरह की सरकारी सुविधा नहीं है। यहां के मलकीत ने शिक्षा की अलख जगाई और आजादी के बाद पहली बार 12वीं पास (82% अंक के साथ) करके गांव का नाम रोशन किया।
गांव में स्कूल था नहीं, इसलिए ये बच्चा लकड़ी की बेड़ी चलाकर 700 मीटर का दरिया पार कर स्कूल जाता था। मलकीत का सपना है कि वह उच्च शिक्षा हासिल कर जज बने और लोगों को न्याय दिलाए। उसकी देखा-देखी गांव के 14 बच्चे भी अब स्कूल जाने लगे हैं। गांव में शिक्षा की बयार चल निकली है।
एक ओर पाक सीमा तो तीन ओर सतलुज से घिरा है गांव
एक ओर भारत-पाक सीमा और तीन ओर से सतलुज के दो भागों में बंटे से होने से बीच में बसे कालूवाला के मलकीत ने प्राइमरी एजुकेशन गांव निहाले वाला के प्राइमरी स्कूल में की। दरिया पर आर्मी हर साल कैप्सूल पुल बनाती है, जिससे लोग आते जाते हैं। मलकीत ने छठी कक्षा में उसने सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल गट्टीराजोके में दाखिला लिया। दाखिला लेने के बाद वह प्रतिदिन सतलुज दरिया को लकड़ी की बेड़ी से स्वयं पार कर स्कूल में जाता था। अगस्त-सितंबर में पानी का बहाव तेज होने पर स्कूल नहीं जा पाता था।
पर्सनेल्टी डेवलपमेंट कैंपों से सीखा शिक्षा का महत्व
प्रिंसिपल डॉ. सतिंद्र सिंह ने बताया कि मलकीत रोजाना स्कूल में लेट आता था। पूछने पर बताया सुबह पहले पिता के साथ सब्जी तुड़वाता है और फिर उन्हें दरिया पार करवाकर आता है जिसके चलते वह लेट हो जाता है। इसके बाद प्रिंसिपल ने नेहरू युवा केंद्र व कुछ अन्य संस्थाओं की मदद से मलकीत सिंह को पर्सनेल्टी डेवलपमेंट कैंपों में भेजा समय और शिक्षा का महत्व समझा और समय पर स्कूल में आने लगा। मलकीत ने बताया कि बीते वर्ष जब सतलुज में बाढ़ आई तो गांव निहालेवाला में जाकर रहने लगा और वहां से पढ़ाई की।
13-14 अन्य विद्यार्थियों को स्कूल में लेकर आया
मलकीत ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए अपने गांव के 13-14 अन्य विद्यार्थियों को भी स्कूल में लेकर आया। इन्हें भी वह स्वयं बेड़ी में बैठाकर लेकर जाता व उन्हें घर छोड़ता। इन विद्यार्थियों में से अब एक विद्यार्थी 12वीं में में और दसवीं में हैं। मलकीत ने बताया कि इस उपलब्धि में प्रिंसिपल डॉ. सतिंद्र सिंह का बहुत योगदान है जिन्होंने गांव जाकर हमारी सारी स्थिति देखी। इसके बाद उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए किताबें, पहनने को ड्रेस आदि की व्यवस्था भी कराई। ताकि हमारी पढ़ाई चल सके।
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