
रूपेश साहू | जिले में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कमी नहीं है, लेकिन सही प्रोत्साहन तथा प्रशिक्षण नहीं मिल पाने के कारण उनका कॅरियर नेशनल के आगे नहीं बढ़ पा रहा है। नेशनल खेलने के बाद भी बेहद बुरे दौर से गुजर रहे हैं। नौकरी तो दूर ठीक ठाक काम नहीं मिलने से एक नेशनल खिलाड़ी खेतों में काम कर रही है तो दूसरा बस में कंडक्टरी करने मजबूर हैं। नौकरी में इन खिलाड़ियों को कोई फायदा नहीं मिल पाया।
पुलिस में जाने की तमन्ना में ऊंचाई बनी बाधा, अब खेत में कर रही हैं काम
बुदेली की सुखबती दर्रो (43) ने 2010 में चेन्नई में आयोजित नेशनल खेल में दौड़ में सिल्वर मेडल प्राप्त किया था। स्कूल में कबड्डी तथा दौड़ में हर बार जीती। स्टेट में तो कई खिताब जीते। इसके बाद सही मार्गदर्शन तथा प्रशिक्षण नहीं मिला तो कॅरियर थम गया। बीए के बाद पीटीआई की ट्रेनिंग की। शिक्षाकर्मी, पुलिस हर जगह आवेदन किया, लेकिन असफलता मिली। पुलिस में काम करने की तमन्ना थी, 10 बार आवेदन किया, लेकिन केवल ऊंचाई के कारण चयन नहीं हो पाया।अब खेतों में काम कर रहीं।
पीटीआई बनकर बच्चों को आगे बढ़ाना चाहती थीं सुशीला पर नहीं मिली नौकरी
ग्राम बुदेली की ही सुशीला महावीर (42) नेशनल खेल चुकी है। 2019 में हरियाणा पंचकुला में आयोजित मास्टरस एथलेटिक्स में भी भाग लिया। चौथी कक्षा से कबड्डी, खो-खो व दौड़ में चैम्पियन बनती रही। उनके पास दस से ज्यादा प्रमाणपत्र हैं। 12वीं के बाद पीटीआई प्रशिक्षण लिया। इच्छा थी पीटीआई बनकर बच्चों को खेल से जोड़ने की दिशा में काम कर सके, लेकिन पीटीआई की नौकरी नहीं मिल सकी। थक हारकर परिवार की किराना दुकान में हाथ बंटाने के अलावा खेतों में काम कर रहीं।
अंतरराष्ट्रीय खेलने का सपना अधूरा नेशनल प्लेयर मुर्गी फार्म चला रहा
आरईएस कॉलोनी निवासी 30 वर्षीय यासीन खान किक्रेट के नेशनल प्लेयर हंै। ऑलराउंडर यासीन ने खेलों के साथ पढ़ाई भी जारी रखते एमए भी किया। क्रिकेट में नेशनल के अलावा फुटबाॅल, गोला फेंक तथा भाला फेंक में भी स्टेट तक खेल चुके हैं। रणजी तथा अंतरराष्ट्रीय खेलने का सपना पूरा नहीं हो पाया तो पुलिस में भी नौकरी के लिए प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। खेलों के नाम मिले सर्टिफिकेट कहीं काम नहीं आए। मजबूर होकर मुर्गी फार्म खोलना पड़ा।
चक्कर काटे पर नहीं मिली नौकरी
शीतलापारा के इमामुल हक (24) भी किक्रेट में नेशनल खेल चुके हैं। कक्षा 11वीं पढ़ने के दौरान नेशनल खेलने इंदौर गए। नेशनल के अलावा 8 बार स्टेट खेल चुके हैं। खेल के कारण 12वीं के आगे पढ़ नहीं पाए। पूरा ध्यान खेल पर रहा, लेकिन कुछ छोटे मोटे सम्मान के अलावा कुछ मिल नहीं पाया। नौकरी के लिए भाग दौड़ की। मंत्रालय तक के चक्कर लगाए। कहीं काम नहीं बना तो मजबूरी में बस में कंडक्टरी का काम कर रहे हैं।
निजी स्कूल में पढ़ाने को मजबूर मनीष
मनीष सिन्हा (25) 2017 में नेशनल फुटबाॅल जम्मू कश्मीर में खेल चुके हैं। तीन वर्ष से पीटीआई का कोर्स करने के बाद योग का डिप्लोमा भी कर चुके हैं। नौकरी कहीं मिली नहीं। मजबूरी में एक निजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं।
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