
कोरोना के मरीज अब कम होने लगे हैं, लेकिन खौफ पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। राजधानी से राज्य के कई शहरों में अभी बसों का परिचालन सामान्य नहीं हो सका है। सबसे अधिक बसें बस्तर रूट पर चलती थीं फिलहाल वहीं सबसे कम चल रही हैं। सामान्य दिनों में यहां 250 से अधिक बसें चलती थीं। अभी यहां बमुश्किल 20 फीसदी बसें ही चल रही हैं। छोटी दूरी के शहरों जाने वाले यात्री कुछ बढ़े इसलिए ज्यादातर उसी रुट पर चल रहीं।
कोरोना काल में पर्यटन के बाद ट्रेन और बस सेवा ही सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। हालांकि ट्रेनों का परिचालन धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। शासन से जैसे जैसे जिस जिस रुट पर ट्रेनें चलाने की मंजूरी मिलती जा रही है, वहां के लिए गाड़ियां शुरू की जा रही है। बसों की स्थिति इसके उलट है। राज्य शासन की अनुमति के बाद भी बसों का परिचालन एक तरह से ठप है। बसों में यात्रा के लिए सवारी ही नहीं मिल रही है। बस आपरेटरों का कहना है कि सीटें इतनी खाली रह जाती हैं कि उनके लिए ड्राइवर-कंडक्टर की सैलेरी और डीजल का खर्च निकालना मुश्किल हो जाता है। 35 से 40 सीटर बसों में कई बार दो दो-चार यात्री ही मिलते थे। छोटी दूरी में फिर भी सवारी मिल जाती है, लंबी दूरी की ज्यादातर बसों में तो एक-दो से ज्यादा यात्री अभी भी नहीं मिल रहे हैं।
कम दूरी के रूट पर 30 फीसदी बसें
महासमुंद, बसना, सराईपाली, बागबाहरा, खरोरा, छुईखदान, बलौदाबाजार, भाटापारा, गुंडरदेही, बालोद, दुर्ग, धमधा, दल्ली राजहरा, कवर्धा, बेमेतरा, मुंगेली आदि छोटी और मध्यम दूरी के शहरों के लिए भी 20 से 30 फीसदी बसें ही चल रही हैं। बस आपरेटर्स एसोसिएशन के सदस्य भावेश दुबे ने कहा कि लॉकडाउन खुलने के समय की अपेक्षा अभी कुछ पैसेंजर बढ़े हैं, लेकिन इतने ज्यादा नहीं हैं कि बस चलाने का पूरा खर्च निकल जाए। छोटे आपरेटर बसें चलाने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। कुछ बड़े आपरेटर्स ही रिस्क लेकर बसें चला रहे हैं।
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