
राजधानी के प्राइम और पॉश इलाकों में खाली पड़ी सरकारी जमीन बेचने का सरकारी फार्मूला आपत्तियों के पेंच में फंसकर फेल हो गया। छह महीने पहले प्रशासन ने खाली पड़ी सरकारी जमीन खरीदने का ऑफर निकाला था। अब तक एक भी जमीन की बिक्री नहीं हुई, अलबत्ता जमीन खरीदने के लिए करीब 600 लोगों ने अर्जियां दे दी। प्रारंभिक परीक्षण के बाद ही लगभग हर अर्जी में किसी ने किसी सरकारी एजेंसी ने आपत्ति लगा दी। किसी खरीदार ने सरकारी भवन के लिए प्रस्तावित जमीन का खरीदने का आवेदन कर दिया तो किसी ने सड़क बनने वाली जमीन खरीदने की अर्जी दे दी। इस वजह से तुरंत ही आपत्ति लग गई।
जमीन खरीदने वाले ग्राहकों को पटवारियों से ही सही जानकारी नहीं मिली। प्रशासन स्तर पर जो प्रक्रिया तय की गई थी उसके अनुसार पटवारियों को ही सरकारी जमीन का रिकार्ड लोगों को उपलब्ध करवाना था। पटवारियों ने जो जानकारी मुहैया करवायी, लोगों ने आवेदन कर दिया। जानकारी गलत होने के कारण आवेदन के स्तर पर ही आपत्तियां लग गईं और पूरी प्रक्रिया रोक देनी पड़ी। एक-दो प्रकरण को लेकर मामला कोर्ट में चला गया। अब तो अफसरों को भी इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। फिलहाल केवल उन्हीं आवेदनों की प्रक्रिया आगे बढ़ायी जा रही है, जिनका बरसों से सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा है और अब वे उस जमीन की कीमत अदा कर उसे वैध करना चाहते हैं।
जबरदस्त मची होड़ पर फंस गया पेंच
सरकार की ओर से सरकारी जमीन बिक्री के संबंध में अप्रैल-मई में आदेश जारी किया गया। उसके बाद प्राइम लोकेशन की सरकारी जमीन खरीदने के लिए शहर के हर सेक्टर में होड़ मच गई। 25 करोड़ से ज्यादा की जमीन खरीदने के लिए कुछ ही दिनों में 600 आवेदन जमा हो गए। इन आवेदनों में करीब 28 लाख वर्गफीट जमीन की बिक्री होनी थी। आवेदनों की प्रारंभिक पड़ताल के बाद ही नगर निगम, लोक निर्माण, सिंचाई, नजूल समेत कई विभागों ने आपत्ति लगा दी।
12.51 लाख वर्गफीट जमीन पर अवैध कब्जा
तहसील से मिली जानकारी के अनुसार शहर में अभी 12 लाख 51 हजार वर्गफीट जमीन ऐसी है जिस पर लोगों का अवैध कब्जा है। 69 लाख 77 हजार 336 वर्गफीट सरकारी जमीन खाली है। यह जमीन शंकरनगर, अवंति विहार, अमलीडीह, रायपुरा, बीरगांव, खमतराई, कचना, आमासिवनी, लाभांडी, भाटागांव, गुढ़ियारी, कोटा, मंडी समेत कई पॉश इलाकों की है। कब्जे वाली जमीन के मालिकाना हक के लिए 175 लोगों ने आवेदन किया था।
इसलिए नहीं हो सकी बिक्री सरकारी जमीन खरीदने के लिए लोगों ने पटवारियों से नक्शा और रकबा-खसरा लेकर अधिकांशतया वह जमीनें मांगीं, जिन्हें किसी न किसी विभाग को उसकी आने वाली योजना के लिए आरक्षित कर लिया है। पीडब्ल्यूडी की ओर से बनने वाली सड़क, निगम की स्मार्ट योजनाएं और सड़क, तालाबों और पानी वाली जमीन खरीदने के लिए भी लोगों ने आवेदन कर दिया था। विभागों से एनओसी लेने के लिए आवेदनों को उनके पास भेजा तो जमीन की बिक्री पर आपत्ति लगा दी। नगर निगम, खनिज और पीडब्ल्यूडी ने सबसे ज्यादा विरोध किया। इसीलिए सरकारी जमीन खरीदी के लगभग सभी आवेदन निरस्त कर दिए गए।
इसलिए लगी आपत्ति
- खनिज विभाग में पट्टे के लिए आरक्षित जमीन। इसलिए कड़ी आपत्ति लगी।
- आवासीय के लिए आवेदन, लेकिन उपयोग कमर्शियल किया जा रहा था।
- सरकारी जमीन की कीमत इतनी लगी कि क्रय करने में असहमति जताई।
- कमर्शियल सड़क पर फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन खरीदने दिया आवेदन।
- कई विभागों ने जमीन के लिए अभिमत ही नहीं भेजा, प्रस्ताव ही अटक गए।
- लोक निर्माण विभाग की सड़क के लिए आरक्षित जमीन खरीदने का प्रस्ताव।
- निगम की सड़क और योजनाओं के लिए आरक्षित जमीन खरीदने के प्रस्ताव।
लोगों ने ऐसी सरकारी जमीन मांगी जो पहले ही दूसरे विभागों ने अपने लिए आरक्षित थी। इस वजह से अभी तक एक भी सरकारी जमीन की बिक्री नहीं हो पाई है। अब यह मामला हाई कोर्ट में है, फिलहाल इस योजना में स्टे है। इसलिए कोर्ट के अगले फैसले का इंतजार है।
प्रणव सिंह, एसडीएम रायपुर
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