
कोरोनाकाल में स्कूल खुल चुके हैं। हालांकि अभी 9वीं से 12वीं तक के स्टूडेंट्स को ही स्कूल बुलाया जा रहा है। मगर स्कूल वैन और बसें शुरू नहीं की गई हैं। ऐसे में पिछले आठ महीने से फ्री बैठे स्कूल बस मालिकों को दो वक्त की रोटी खाने के लाले पड़ चुके हैं। उनका कहना है कि वे स्कूल बसों की किश्तें दे पाना तो दूर, उसमें तेल तक नहीं डलवा पा रहे।
उनका कहना है कि वे स्कूल बस चलाना ही जानते हैं। जबकि कुछ स्कूल बस ऑपरेटर सब्जी बेचकर गुजारा कर रहे हैं। न तो स्कूल प्रबंधकों ने उनकी सार ली और न ही सरकार ने। आलम ये है कि बैंक वाले बस की किश्तें लेने के लिए उन्हें को तंग कर रहे हैं।
स्कूल बस आपरेटर वेल्फेयर एसोसिएशन ने सरकार से मांग की कि मार्च 2021 तक का टैक्स माफ किया जाए। बैंकों से गाड़ियों की किश्तों की वसूली बंद करवाई जाए। अगले 2 सालों तक की किश्त ब्याज को माफ कर आगे बढ़ाई जाए।
बैंकों को नोटिस भेजने पर रोक लगाई जाए और बैंकों पर बनती कार्रवाई की जाए, क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है। जिन बसों को पिछले महीने में स्कूलों ने उनकी बनती फीस नहीं दी, उन्हें बस ऑपरेटरों को भुगतान करने के लिए पाबंद किया जाए। साल 2020-21 दौरान स्कूल बस मालिकों को हुए घाटे के लिए राहत पैकेज दिया जाए। स्कूल बसों की इंश्योरेंस का समय आगे बढ़ाया जाए।
पत्नी को हुआ डेंगू, इलाज के लिए पैसे नहीं
गुरु अर्जुन देव नगर के मनप्रीत सिंह ने बताया कि उन्हें मालूम नहीं था कि कोरोना उन पर इतना कहर ढाएगा। रोटी तक के लाले पड़ गए हैं। किश्तें तक नहीं दे पा रहे हैं। पत्नी को डेंगू हो गया है। अभी अस्पताल में दाखिल है, परंतु इलाज के लिए पैसे नहीं है।
कोरोना से पहले मेडिकल इंश्योरेंस करवाई थी, अगर न करवाई होती तो भगवान जाने क्या होता। कोरोनाकाल में स्कूल बस में ही सब्जी बेचनी शुरू कर दी, परंतु रोटी तक के पैसे नहीं जुटे। वह बीसीएम स्कूल चंडीगढ़ रोड सेक्टर-32 की बस चलता है। जिन बच्चों को वह स्कूल लेकर जाने का काम करते हैं, उन्हीं पेरेंट्स ने मदद की। मुश्किल के समय में पैसे भी दिए। पेरेंट्स ने कहा कि जब स्कूल खुलेंगे तो धीरे-धीरे लौटा देना।
चार माह से नहीं दे पाया घर का किराया
पंजाबी बाग के रहने वाले वरिंदर कुमार ने बताया कि वह किराए के मकान में रहता है। 2017 में एक स्कूल बस खरीदी किश्तों पर खरीदी थी। लॉकडाउन में सब अस्त-व्यस्त होगा। लॉकडाउन से पहले हैबोवाल में किराए का मकान लिया था। अब दुर्गा माता मंदिर के बाहर सब्जी बेचने का काम शुरू किया है, परंतु जो आमदन हो रही है, वह न के ही बराबर है। पेरेंट्स को फोन कर पैसे की मदद मांगी थी, परंतु किसी ने सहारा नहीं दिया। बच्चों की फीस देने के लिए भी पैसे नहीं जुटा पा रहे हैं और चार महीने का किराया भी नहीं दे पा रहे।
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