बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाले दशहरा में शनिवार को अश्विन अष्टमी की आधी रात निशा जात्रा गुड़ी में पूजा-अनुष्ठान के बाद राज परिवार की मौजूदगी में 11 बकरों की बलि दी गई।
अष्टमी की रात बस्तर और देश की खुशहाली की कामना के साथ देवियों को मोंगरी मछली, कुम्हड़ा और बकरों की बलि दी गई। आधी रात के बाद हुए अनुष्ठान रस्म के गवाह बनने बड़ी संख्या में भक्त मौजूद थे।
बस्तर दशहरा के प्रमुख रस्मों में से एक निशा जात्रा पर बकरों के अलावा कुम्हड़ा और मोंगरी मछली की बलि देकर अपनी आस्था जताई गई।
शनिवार की रात राजपरिवार के कमलचंद भंजदेव, राजपुरोहित, राजगुरु और मावली व दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी दंतेश्वरी मंदिर से पूरे भोग व पूजा सामग्री के साथ निशा जात्रा मंदिर पहुंचे। रात में मंदिर पहुंच पुजारियों के सहयोग से भैरमदेव जी की पूजा के बाद मंदिर प्रांगण के हवन स्थल पर बकरों की बलि दी गई।
इसके बाद मावली मंदिर, सिंहढ्योड़ी व काली मंदिर में बकरे की बलि दी गई। जबकि दंतेश्वरी मंदिर में एक काले कबूतर, 7 मोंगरी मछली तथा श्रीराम मंदिर में उड़द दाल व रखिया कुम्हड़ा की बलि दी गई है। रस्म अदायगी के दौरान बस्तर दशहरा समिति और टेंपल कमेटी के सदस्य मौजूद थे।
निशा जात्रा मंदिर में खमेश्वरी देवी का वास माना जाता है। यह मंदिर साल में एक बार ही खुलता है।
जोगी छोड़ेगा आसन, मावली परघाव रस्म आज
निर्विघ्न पर्व मनाने और 9 दिनों तक साधनारत योग पुरुष ‘जोगी’ रविवार की शाम विशेष अनुष्ठान के बाद उपासना तोड़ते आसन्न छोड़ेगा।
इस मौके पर दशहरा समिति के सदस्यों सहित रथ कारीगर प्रमुख दलपति, कंवलराम, अन्य मांझी-मुखिया और ग्रामीण मौजूद रहेंगे।
टेंपल कमेटी के सदस्यों ने कहा कि कलश स्थापना के साथ ही जोगी सिरहासार में बने गड्ढे पर बैठकर योग साधना करता है। इस साल यह विधान बड़े आमाबाला का भगत कर रहा है। मावली परघाव की रस्म भी रविवार को होगी।
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