
जिले में सीताफल का प्रचुर उत्पादन होता है लेकिन अब तक सीताफल औने पौने दामों में खरीद कर दलाल और कोचिए इसे बड़े शहरों में बेच देते थे। इससे जिले के सीताफल उत्पादकों को कोई विशेष लाभ नहीं होता था। चार सालों पहले प्रशासन तथा कृषि विभाग ने सीताफल की पैकेजिंग कर सीधे बड़े शहरों में बेचने के अलावा महिला समूहों को सीताफल का पल्प निकाल उससे आईसक्रीम बनाने का प्रशिक्षण दिया। उपकरण भी उपलब्ध कराए। इसका नतीजा है की आज जिले की महिला समूहों से जुड़ीं 4500 महिलाएं इस स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। सोमवार को इसे संज्ञान में लेते देश के नीति आयोग ने ट्वीट कर महिला समूहों को काम की प्रशंसा की है।
जिले के चार विकासखंडो कांकेर, चारामा, नरहरपुर एवं दुर्गूकोंदल में 3.19 लाख सीताफल पेड़ हैं। हर साल अक्टूबर तथा नवंबर माह में लगभग 6000 मैट्रिक टन तक सीताफल उत्पादन होता है। चंूकि सीताफल उत्पादक किसानों को इसके विपणन की सही जानकारी व परख नहीं थी जिसके कारण वे इसे दलालों अथवा बिचौलियों के हाथों सस्ते में बेच देते थे। चार सालों पहले जिला प्रशासन तथा कृषि विभाग ने इस दिशा में काम करना शुरू करते कांकेर वैली फ्रैश कस्टर्ड एप्पल प्रोजेक्ट तैयार किया। इससे सीताफल उत्पादक परिवार की महिलाओं को जोड़कर समूह बनाए गए। सीताफल की सही पैकेजिंग कर बड़े शहरों तक इसे सीधे पहुंचा स्टाल लगाकर बेचना शुरू किया गया जिससे सीताफल की सही कीमत उत्पादकों को मिलने लगी। चूंकि सीताफल का उपयोग तत्काल करना होता है तथा उसे रखा नहीं जा सकता इसलिए सीताफल का पल्प निकाल उससे आईस्क्रीम बनाने प्रशिक्षण महिला समूहों को दिया जाना शुरू किया गया। प्रोजेक्ट के माध्यम से समूहों को सीताफल से पल्प निकालने मशीनें भी उपलब्ध कराई गई। पल्प निकालने के बाद इससे आईस्क्रीम बना बाजार में बेचना शुरू किया।

सीताफल व्यापार में काम कर रहे 33 समूह
इस वर्ष सीताफल के संग्रहण तथा व्यापार से जिले के 5700 लोग जुड़ चुके हैं जिसमें 4500 महिलाएं हैं। इनमें 33 समूहों की 599 महिलाएं भी शामिल हैं जो प्रशिक्षित हैं तथा पल्प निकालकर आईस्क्रीम बनाने का काम करती हैं।
समूहों की महिलाओं का काम उल्लेखनीय
कलेक्टर चंदन कुमार ने कहा की सीताफल उत्पादन, पैकेजिंग, विपणन तथा आईस्क्रीम बनाने का काम महिला समूहों द्वारा बहुत अच्छे से किया जा रहा है। इससे सीताफल उत्पादकों को उनके उपज की अच्छी कीमत मिल रही है।
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